रुड़की। ( बबलू सैनी )
आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में भले ही दल बल के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हो, लेकिन स्थानीय तौर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी साफ तौर पर झलकने लगी है। वह इसलिए कि उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी का चुनाव सिर्फ दिल्ली से आई टीमों के सहारे लड़ा जा रहा है और वायदे भी दिल्ली सरकार के नाम पर ही किए जा रहे हैं। ऐसे में अब तक सिर्फ क्षेत्र की जनता ही इन प्रत्याशियों का विरोध करती थी, लेकिन अब पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी संगठन और प्रत्याशियों का विरोध शुरू कर दिया है। क्योंकि जो प्रत्याशी आप पार्टी के नाम पर चुनाव मैदान में हैं और वह दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के द्वारा जारी किए गए गारंटी कार्ड को आधार बनाकर अपना वोट बैंक साधने में जुटे थे, अब आप पार्टी आई इस रणनीति का धीरे-धीरे पटाक्षेप होने लगा है। क्योंकि स्थानीय विधानसभाओं के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं द्वारा जो सालों से यहां पार्टी को मजबूती देते आये है, के द्वारा भी अब खुलकर दिल्ली से आई टीम और प्रत्याशियों का विरोध करना शुरू कर दिया गया है। क्योंकि न तो उनकी वहां पूछ हो रही है और ना ही उनसे विधानसभा स्तर की जानकारी पर विचार विमर्श किया जा रहा है। साथ ही जो रणनीति दिल्ली की टीमों द्वारा बनाई जा रही है, उसे ही प्रत्याशियों पर थोपा जा रहा है। उसमें किसी का भी हस्तक्षेप नही किया जा रहा, जिसको लेकर वह ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
राजनीतिक स्तर की यदि बात करें, तो दिल्ली और उत्तराखंड के राजनीतिक समीकरण और आम जनता की सोच बिल्कुल अलग है, लेकिन शायद आप पार्टी हाईकमान किसी भ्रम की स्थिति में है कि वह दिल्ली की पॉलिसी और रणनीति को उत्तराखंड में लागू कर यहां अपना अच्छा खासा वोट बैंक हासिल कर ले ओर शायद ऐसा हो कि पार्टी प्रत्याशियों को वोट के नाम पर सिर्फ सफेद हाथी ही नजर आये। क्योंकि जो कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी को उत्तराखंड और हरिद्वार जनपद के विधानसभा क्षेत्रों में खड़ा करने के लिए खड़े हुए थे, आज संगठन और प्रत्याशी दोनों ही स्थानीय लोगों की उम्मीदों को नकार कर धनबल के सहारे अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, जिसके सुलगते अंगारे (राजनीतिक टीस) अब सोशल मीडिया पर भी नजर आने लगी हैं, बहरहाल कुछ भी हो जिस ख्वाब और राजनैतिक मंजिल के आधार पर आप पार्टी उत्तराखंड में चुनाव लड़ने जा रही है। उसे चुनाव में सिर्फ सफेद हाथी ही नजर आने वाला है। क्योंकि आप पार्टी प्रत्याशियों के पल्ले भी कोई खास वोट बैंक नहीं है, क्योंकि ना तो वह स्थानीय हैं और ना ही उनके पास कोई गारंटी वाला समर्थक। अब सवाल यह है कि हरिद्वार जनपद में पार्टी प्रत्याशी स्थानीय कार्यकर्ताओ को नकारकर किस प्रकार अपनी मंजिल को हासिल कर पाते है?

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