रुड़की। ( भूपेंद्र सिंह ) उद्यान विभाग व वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के चलते लकड़ी माफियाओं के हौंसले बुलंद हो रहे हैं। वह बिना अनुमति के ही (जबकि अनुमति प्रक्रिया बंद हैं) आम के प्रतिबंधित पेड़ काटकर फरार हो जाते हैं। जागरूक व समाजसेवी लोगों द्वारा जब इसकी शिकायत सम्बन्धित अधिकारियों से की जाती हैं, तो वह पल्ला झाड़ते नजर आते हैं। ऐसा ही एक मामला मंगलौर क्षेत्र से जुड़ा हैं, जिसमंे एक ठेकेदार द्वारा 1 मार्च को आम के करीब 30 से 40 प्रतिबंधित पेड़ रातों-रात काटकर बेच दिये गये। जब दिन निकला, तो समाजसेवी लोग मॉर्निंग वॉक पर निकलें, तो देखा कि आम के फलदार पेड़ गायब हैं। इसकी सूचना उद्यान विभाग के साथ ही वन विभाग व मीडिया को भी दी गई। जब इस सम्बन्ध में मीडिया द्वारा सम्बन्धित अधिकारियों से जानकारी लेना चाही गई, तो उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिये। एक ओर जहां उद्यान विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि उनके पास खसरा नंबर नहीं हैं और स्थानीय लेखपाल से इसकी जानकारी मांगी जा रही हैं, तो वहीं वन विभाग के अधिकारी भी मामला उद्यान विभाग से जुड़ा बताकर अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। ऐसा लगता है कि दोनों ही विभाग के अधिकारी और कर्मी ठेकेदार से सांठगांठ कर आम जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। साथ ही सरकार के राजस्व को भी चूना लगा रहे हैं। समाजसेवी लोगों का कहना है कि इस सम्बन्ध में रेंजर से भी शिकायत की गई, लेकिन उन्होंने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अब उन्होंने डीएफओ हरिद्वार धर्म सिंह मीणा के साथ ही गढ़वाल निदेशक व उद्यान विभाग के उच्चाधिकारियों को भी शिकायत की हैं। हैरत की बात यह है कि अभी तक न तो सम्बन्धित ठेकेदार और न ही मालिक के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में लाई गई। जबकि फिलहाल आम के पेड़ों पर कोहर (फल) आ रहा हैं और उन्हें काटने की अनुमति भी बंद हैं। एक ओर सरकार जहां हरियाली व फलदार पेड़ों के संरक्षण का अभियान चला रही हैं। वहीं वह लोग जिनकी जिम्मेदारी बनती हैं, वही इन फलदार पेड़ों को कटवाने का काम कर रहे हैं। वह भी बिना अनुमति के। ऐसे अधिकारियों और कर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई होना नितांत आवश्यक हैं ताकि भविष्य में यदि कोई ठेकेदार/अधिकारी इस प्रकार की पुनरावृत्ति करें तो एक सबक मिलें।  हरे पेड़ काटने का यह कोई पहला मामला नहीं हैं, हरिद्वार जनपद में ऐसे कई स्थान हैं, जहां प्रतिबंधित पेड़ो पर आरियां चलाई जा रही हैं। ऐसे में उद्यान और वन विभाग के कर्मियों की कार्यशैली संदेह के घेरे में हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि उच्च अधिकारी इस मामले में क्या कदम उठाते हैं?

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