डाॅ. विजय बहुगुणा
सहिष्णुता…। यह शब्द जितना सही अर्थ देता है, उतना ही विवादित भी रहा है। जब भी सहिष्णुता की बात की जाती है। वेजह विवाद खड़ा हो जाता है। लेकिन, इस शब्द का महत्व और तात्पर्य इतिहास के पन्नों में पिछा है। इसी पर आधारित एक सेमिनार आयोजित किया गया था, जिसमें नाथ सिद्ध परंपरा में मुखरित सामाजित सहिष्णुता विषय रखा गया था। हालांकि, सेमिनार किसी एक परंपरा पर केंद्रिता था, लेकिन अगर इसकी गहराई को देखा जाए तो यह बहुत वृहद और वर्तमान परिस्थियों पर एकदम सटीक बैठता है।

इतिहासकार डॉ. विजय बहुगुणा

शहीद दुर्गामल राजकीय महाविद्यालय डोईवाला के सभागार में आयोजित सेमिनार में राजकीय महाविद्यालय बड़कोट के इतिहासकार डॉ. विजय बहुगुणा ने कहा कि सहिष्णुता कहीं ना कहीं नाथ परंपरा और सूफी परंपरा में हमेशा से ही लाखों हिंदुओं व मुसलमानों की आस्था में प्रतिबिंबित होती है। गोरख वाणी में धार्मिक अस्मिता से संबंध सबसे स्पंदन सील पंक्ति उल्लेखनीय है।

उत्पत्ति हिंदू जरणां अकलि पीर मुसलमानी।
ते राह चीन्हों हो काजी मुला ब्रह्मा विष्णु महादेव मानी

योग-मार्ग पर एक साथ चलने का उपदेश

गोरखनाथ नेे हिन्दू-मुसलमान सभी को योग-मार्ग पर एक साथ चलने का उपदेश दिया। उन्होंने गोरख वाणी में हिन्दुओं योगियों, पीरों, काजियों, मुल्लाओं को कहा कि सभी उस योग-मार्ग पर चलो और योग साधना करो, जिसको ब्रह्मा, विष्णु और महादेव ने भी अपनाया था। इसकी सबसे खास विशेषता यह रही है कि इसमें तीन अलग-अलग परंपराओं को अलग-अलग चिन्हित किया जा सकता है। यह परंपराएं हिंदू योगी और मुसलमान की हैं।

अकल से मुसलमान हो गए

मध्यकालीन संत गोरखनाथ कहते हैं कि वो पैदा हिंदू हुए, कालांतर में योगी हो गए और अकल से मुसलमान हो गए। कबीर की तरह गोरखनाथ भी मानते हैं कि कोई मुसलमान रहते हुए भी ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। 1931 की जनगणना, जिसे टर्नर ने प्रकाशित किया था और आंकड़ों को रेखांकित करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट में हिंदू, जोगी, मुसलमान आदि को भी शामिल किया गया था। 1943 में प्रकाशित गोरखनाथ एंड कंफर्टा योगी के लेखक ब्रिक्स ने लिखा कि नाथपंथी योगियों और सूफी सिलसिले कहीं ना कहीं हठयोग के प्रति समर्पित रहे। जहां तक सहिष्णुता का सवाल है, यदि इतिहास पलट कर देखें तो जान पड़ता है कि उत्तराखंड के कालसी शिलालेख में 14 अभिलेख में अहिंसा के दर्शन परिलक्षित होते हैं।

नाथ और सिद्ध योगियों का जबरदस्त प्रभाव

मध्यकालीन संत कबीर और गोरखनाथ हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार रहे। महात्मा बुद्ध, अशोक, अकबर महान और महात्मा गांधी ने भी कहीं ना कहीं सहिष्णुता पर बल दिया। कबीर आदि निर्गुण संतों पर नाथ और सिद्ध योगियों का जबरदस्त प्रभाव था। गढ़वाल के तंत्र-मंत्रों में नाथों के साथ कबीर नाथ और कमलनाथ के नाम का उल्लेख हुआ है, जो उपभोक्ता प्रभाव को प्रमाणित करता है कि तंत्र- मंत्र की नाथ सिद्ध परंपरा समाज के निचले वर्ग की उपज रही है।

हिंदू-मुस्लिम एकता परिलक्षित होती है

नाथपंथ में हिंदू-मुस्लिम एकता परिलक्षित होती है। रोगों के निवारण और शरीर रक्षा के लिए जो मंत्र प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें रखवाली कहा जाता है। घटस्थापना भी कहा जाता है। इससे जान पड़ता है कि मंत्र में इस बात का जिक्र हुआ है कि उसमें मुख्यतः तुर्कानी के पुत्र वीर मैमन्दा का आह्वाहन मुख्य होता है। संभवतः यह कोई मुसलमानी देवता प्रतीत होता है। मुसलमानी भूत प्रेतों को सैद कहा जाता है और उनसे मुक्ति पाने के लिए सैद्धाली मंत्र बोले जाते हैं। रखवाली, नरसिंह वाली, ओजो झाड़ों आदि तंत्र-मंत्रों में गोरखनाथ आदि नाथों और सिद्धों के नाम उल्लेखनीय हंै।

सूफी सिलसिलों में सबसे मशहूर सिलसिला

सूफी सिलसिलों में सबसे मशहूर सिलसिला चिश्ती सिलसिला था, जिसका महान पीर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर से सम्बद्ध रहा। आज भी लाखों मुसलमान और हिन्दू अजमेर की दरगाह पर आस्था और निष्ठा का प्रदर्शन करते हैं। अशोक का धम्म, दिन-ए-इलाही, सुलह-ए-कुल, इबादतखाना, अहिंसा और सहिष्णुता का पाठ बरबस याद आता है। जब कभी भी नाथपंथ और सूफी सिलसिले का जिक्र होगा, तो निश्चित ही हठयोग, पवित्रता, प्रेम, सामाजिक सौहार्द मिल का पत्थर साबित होगा।
(नोट: लेखक राजकीय महाविद्यालय बड़कोट में इतिहास विभाग के प्रमुख हैं। उनके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल में शोध प्रकाशित हो चुके हैं।)

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