रुड़की। ( आयुष गुप्ता )  उत्तराखण्ड मुक्त विश्व विद्यालय हल्द्वानी के विशेष शिक्षा विभाग द्वारा सांकेतिक भाषा को बढ़ावा देने व प्रशिक्षण के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस मौके पर उद्घाटन करते हुए विशेष शिक्षा विभाग के समन्वयक व सहायक प्राध्यापक डॉ. सिद्धार्थ पोखरियाल ने कहा कि सांकेतिक भाषा का प्रचलन ‘महाभारत’ काल से शुरू हुआ और 5वीं शताब्दी में यूरोप में इसके संकेत प्राप्त होते हैं। भारत में 11वीं पंचवर्षीय योजना में सांकेतिक भाषा के लिए एक अलग विभाग की संरचना की आवश्यकता पर बल दिया गया। उन्होंने कहा कि विश्व विद्यालय इस पर एक डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी शुरू कर रहा हैं, जिसके लिए भारतीय पुनर्वास परिषद से पत्राचार कर पाठ्यक्रम निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। कार्यशाला में सांकेतिक भाषा का प्रशिक्षण देने के लिए विशेष विशेषज्ञ जगदीप पोल ने अपने उद्बोधन मंे सांस्कृतिक भाषा के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि सांकेतिक भाषा वर्तमान में छात्रों के अध्ययन्-अध्यापन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं को प्रदर्शित कर सकता हैं। सांकेतिक भाषा का प्रशिक्षण सभी के लिए आवश्यक हैं। इस मौके पर बोलते हुए प्राध्यापिका डॉ. भावना डोभाल ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा सांकेतिक भाषा के महत्व को ‘मन की बात’ में कई बार बताया। जो यह स्पष्ट करता है कि यह भाषा हमारे लिए कितनी उपयोगी और महत्वपूर्ण हैं। वहीं प्रतिभागी अविनाश पाटिल ने इसे बड़ा उपयोगी बताया और इस तरह की कार्यशला से दिव्यांग जनों के सशक्तिकरण पुनर्वास में कार्यरत व्यक्तियों को सहायता भी मिलेगी तथा समाज में एक अलग तरह का संदेश सांकेतिक भाषा के द्वारा दिया जा सकता हैं। प्रशिक्षण में विभिन्न पाठ्यक्रम में अध्ययनरत् विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया, जिनमें राखी गोर, शशिकलां, अशोक पाल सिंह, जन्मेंजय अजय कुमार, अनुराग सिंह, सुनील नेगी, राहुल, चेत बहादुर थापा आदि शामिल रहे।

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