रुड़की। ( आयुष गुप्ता )
पूरे देश में करवाचौथ का पर्व बड़े ही धूमधाम और श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। इस दिन विवाहित हिन्दू स्त्रियां अपने सुहाग के दीर्घायु जीवन की कामना के साथ निर्जल व्रत रखकर पूरे विधि विधान से पूजा कर भगवान से अपने पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती है, लेकिन त्यागी समाज के बीकवान भारद्वाज गोत्र में यह त्यौहार नही मनाया जाता। रुड़की सहित हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, कोटद्वार और काशीपुर आदि जगहों में रहने वाले बिकवान भारद्वाज त्यागी समाज के परिवारों की स्त्रियां सैकड़ो सालो से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाहन करते हुए करवाचौथ पर्व नहीं मनाती।
त्यागी विकास एवं कल्याण समिति के उपाध्यक्ष डॉ. प्रदीप त्यागी ने बताया कि राज्य के बार्डर पर स्थित बरला, फलौदा, खाईखेड़ी, घुमावटी, छपार, भैसानी, खुडडा व कुतुबपुर आदि गांव बिकवान त्यागी समाज की स्त्रियां करवाचौथ का व्रत नहीं रखती और न ही यह त्यौहार मनाती। उन्होने बताया कि करीब 500 वर्ष पहले इस दिन बारात के साथ हरियाणा से लौट रहे बिकवान त्यागी समाज के नवविवाहित दंपति की सहारनपुर जनपद के जड़ौदापांडा गांव में बाग में आराम करते वक्त सांप के डसने मृत्यु हो गई थी। तभी से इस समाज में करवाचौथ का पर्व नहीं मनाया जाता। इस समाज के लोग आज देश-विदेश कही भी रह रहे हो, इस परंपरा का पालन अवश्य करते हैं। रुड़की में भी इस गोत्र के लगभग 400 परिवार है, जिनमें यह त्यौहार नही मनाया जाता।
वहीं भाजपा महिला मोर्चा जिला कार्यकारिणी सदस्य व समाजशास्त्री डॉ. मधु त्यागी ने बताया कि इस गोत्र की सुहागिन महिलाएं सैकडो वर्षो से इस परंपरा का निर्वाहन कर रही है। कई बार नई पीढ़ी के बच्चें परंपरा को तोड़ करवाचौथ का व्रत रखना चाहते हैं, लेकिन घर परिवार के बड़े बुजर्ग अनहोनी की आशंका और समाज के बुजुर्गो द्वारा तय परंपरा के निर्वहन का वास्ता देकर उनको यह त्यौहार मनाने से रोक देते हैं।

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