रुड़की। ( बबलू सैनी/ भूपेंद्र सिंह )
जब-जब बसपा हाईकमान ने झबरेड़ा से अपना सिंबल देकर चुनाव में प्रत्याशी उतारा, तब-तब पार्टी को यहां अपना मजबूत वोटबैंक गंवाने के साथ ही अपनी साख पर भी बट्टा लगवाना पड़ा।
यह कोई पहली बार नही हो रहा। इस बार के कयास भी लोग यही लगा रहे है कि बसपा ने झबरेड़ा सीट से आदित्य बृजवाल को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में तो उतार दिया, लेकिन क्या वास्तव में वह विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रबल प्रत्याशी थे भी या नहीं। यह चर्चा बनी हुई है ओर इस फैसले के बाद बसपा पार्टी अपने कैडर वोटबैंक को भी गंवा सकती है। चूँकि बसपा से विधायक रहते हुए हरिदास के कार्यकाल को सभी ने नजदीक से देखा है। जिसने विकास को लेकर कोई प्रयास ही नहीं किये।
इस बार बसपा हाइकमान ने आदित्य बृजवाल को अपना प्रत्याशी तो जरूर बनाया है, लेकिन वह बसपा की झोली में यह सीट डाल पायेंगे या नही, यह तो आने वाला ही बता पायेगा। लेकिन क्षेत्र की जनता में यह चर्चा जोरों पर चल रही है कि आदित्य बृजवाल कब तक अपने पिता के राजनैतिक सुख का भोग करते रहेंगे या फिर बसपा हाइकमान के साथ ही अपने पिता की साख पर भी बीडीसी चुनाव की तरह पानी फेरने का काम करेंगे। क्योंकि आदित्य बृजवाल निकाय चुनाव में बीडीसी का चुनाव बेहद बुरी तरह हारे थे, लेकिन राजनैतिक चस्के की लत ओर पिता के राजनैतिक रसूख के कारण उन्होंने फिर से एक बीडीसी को धनबल के सहारे बैठा दिया था, लेकिन अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षा ओर निजी स्वार्थ के चलते यहाँ भी हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस सरकार में आदित्य बृजवाल मंडी समिति के अध्यक्ष बनाये गए, यहां रहते हुए उन्होंने अपने हित साधे, जबकि किसानों के हित में कोई रणनीति नहीं बनाई। अब फिर बसपा पार्टी से झबरेड़ा का टिकट लेकर आदित्य चुनाव मैदान में है। यहाँ दिलचस्प बात यह होगी कि आदित्य बृजवाल बीडीसी चुनाव के मुकाबले कितने वोट हासिल कर पाते है, या उतनी ही वोटों में सिमटकर रह जाते हैं।

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