रुड़की।
प्रदेश की भाजपा सरकार अपने साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल में विभिन्न मोर्चों पर विफल साबित हुई है। राज्य सरकार ने अपने कार्यकाल में प्रदेश की जनता की मुश्किलें निरंतर बढ़ाने का कार्य किया हैं। कोरोना के समय सरकार का कुप्रबंधन, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति में निरंतर गिरावट आदि राज्य सरकार की विफलता का प्रमाण है, जो छुपाया नही जा सकता है।
उक्त जानकारी महानगर कांग्रेस कमेटी के महामंत्री विशाल शर्मा ने कहा कि अपनी उदासीनता के चलते मजदूरों, किसानों, युवाओं, व्यापारियों, लघु व्यवसायियों और अन्य वर्गों को किसी प्रकार की राहत सरकार द्वारा सुनिश्चित नही की गई। उत्तराखंड के रोजगार कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, राज्य सरकार कोरोना महामारी के दौरान केवल आधे प्रतिशत से भी कम लोगों को रोजगार देने में सफल रही है, जो बहुत ही निराशाजनक आंकड़े हैं। बेरोजगारी की समस्या के प्रति राज्य सरकार का उदासीन रवैया अपनाना युवाओं के लिए दुखद पहलू है। प्रदेश का युवा आज सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है और प्रदेश की भाजपा सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए संकल्पित और एकजुट हो चुका है। हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान फर्जी कोविड परीक्षण घोटाला और यहां तक ​​कि महामारी के बीच इस बड़े कार्यक्रम का आयोजन भी आने वाले चुनाव में भाजपा के लिए नकारात्मक कारक बन, उसे सत्ता से बाहर करने का एक बड़ा कारण बनेगा। कुंभ, मीडिया और बाहरी लोगों के लिए एक मुद्दा हो सकता है, लेकिन स्थानीय लोग शुरू से इस आयोजन के पक्षधर नही थे। मीडिया ने भी कहा था कि कोरोना वायरस खतरा कम नही हुआ है, लेकिन राज्य सरकार ने सबकी अनदेखी की, नतीजतन कुंभ पूर्ण होने से पूर्व ही अपनी विफलता को भाँपते हुए राज्य सरकार द्वारा मेले का आखिरी शाही स्नान रद्द कर दिया गया। अपने 2017 के चुनावी घोषणापत्र में, भाजपा ने स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने के लिए शैक्षणिक रूप से उत्कृष्ट छात्रों और एयर एम्बुलेंस, टेलीमेडिसिन जैसी सुविधाओं के लिए स्मार्टफोन और लैपटॉप के साथ-साथ जरूरतमंदों के लिए रोजगार और स्नातक तक मुफ्त शिक्षा का वादा किया था, हालांकि पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने को है और इनमें से अधिकांश वादे अधूरे रह गए हैं। 2018 नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य, शासन और सूचना जैसे डोमेन के आधार पर समग्र सूचकांक स्कोर में राज्य की रैंकिंग 2014-15 में 14वें से फिसलकर 15वें स्थान पर आ गई। राज्य के भाजपा नेता इन विफलताओं के लिए महामारी पर दोष मढ़ देते हैं, जबकि राज्य सरकार द्वारा COVID संकट में कुप्रबंधन इसका प्रमुख कारण रहा है। देवस्थानम बोर्ड के गठन के बाद से प्रदेश सरकार को जमीनी स्तर पर जनता के विरोध का सामना करना पड़ रहा है किंतु अपनी हठधर्मिता के चलते सरकार इस बोर्ड को भंग नही कर रही है। पूरे देश की भाँति उत्तराखंड में भी किसान भाजपा सरकार का खुलकर विरोध कर रहे हैं जो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आएगा।सत्तारूढ़ दल कोरोनो वायरस महामारी की संभावित तीसरी लहर की तैयारी करने और सामूहिक टीकाकरण सुनिश्चित करने के बजाय ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ जैसे चुनावी कार्यक्रमों में अपना ध्यान केंद्रित किए हुए है, ऐसे में अगर कोरोना की तीसरी लहर आती है तो राज्य के लिए ये घातक साबित हो सकता है। नवनियुक्त मुख्यमंत्री में प्रशासनिक अनुभव की कमी और वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी उत्तराखंड राज्य के लिए एक चुनौती के रूप में सामने आ रही है। इन हालातों प्रदेश की जनता 2022 में सकारात्मक बदलाव के लिए काँग्रेस को विकल्प के रूप में स्वीकार करने का मन बना चुकी है।

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