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वेंटिलेटर कोई पानी की टोंटी नहीं, जो खोला और पी लिया, मीडिया के सवालों पर बोले सीएमएस

रुड़की।
रुड़की के सिविल अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग कोरोना महामारी में कितना लापरवाह बना हुआ हैं, इसका एक नमूना उस समय देखने को मिला, जब अस्पताल में वेंटिलेटर मशीन न होने के कारण कोरोना के मरीजों को भारी फजीहत झेलनी पड़ी।
ज्ञात रहे कि रुड़की के सरकारी अस्पताल में लाखों रुपयों की लागत से 14 वेंटिलेटर मशीनें पिछले डेढ़ साल एक कमरे में पड़ी धूल फांक रही है। 2020 में कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना मरीजों के लिए वेंटिलेटर मशीने खरीदी थी, लेकिन आज तक मशीनों का संचालन नही हो पाया है। सभी वेंटिलेटर मशीनें एक बंद कमरे में धूल फांक रही हैं। जहाँ एक तरफ पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही उत्तराखण्ड में भी लगातार मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है और अस्पतालों में मरीजों को वेंटिलेटर न होने की वजह से कोविड संक्रमित मरीजों की मौत भी हो रही है। वहीं ऐसे हालात में सिविल अस्पताल प्रबन्धन का लापरवाही पूर्ण रवैया दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य विभाग की इस बड़ी लापरवाही का खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है। वही सीएमएस डॉ. संजय कंसल से जब इस बाबत जानकारी ली गई, तो उन्होंने अटपटे शब्दों में कहा कि ये कोई पानी की टोंटी नही है, जो हमने पानी खोला और मरीज ने पानी पी लिया। वेंटिलेटर मशीन चलाने के लिए उनके पास पर्याप्त स्टाफ नही है। साथ ही मशीन चलाने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यता होती हैं और अभी तक आईसीयू वार्ड भी नही बन पाया है। इसलिए वेंटिलेटर मशीन सुचारू नही हो पाई। अब सवाल यह है कि आखिर आईसीयू वार्ड तैयार करने की जिम्मेदारी किसकी हैं? ओर रुड़की के साथ ही आस-पास की विधानसभाओं में मात्र एक यही बड़ा सरकारी अस्पताल हैं। लेकिन यहां भी व्यवस्थाएं सुचारू नहीं हैं। अब ऐसे में कोरोना महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग किस मंशा से काम कर रहा हैं, यह सोचनीय प्रश्न हैं?

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