रुड़की।
देश में जहां कुछ लोग नफरत फैलाकर धार्मिक भेदभाव पैदा करने की कोशिश करते है, वही रुड़की नगर में एक ऐसे भी व्यक्ति हैं जिनका जीवन राष्ट्रीय एकता तथा साम्प्रदायिक सदभाव को बढ़ाने के लिए समर्पित है। जिनको लोग पंडित राम कुमार शर्मा उर्फ आरके राही के नाम से जानते है, जो प्रति वर्ष मुसलमानों के रमज़ान महीने के अंतिम सप्ताह में एक सद्भावना रोज़ा रखते है। इस बार ये रोज़ा उन्होंने देश से कोरोना की निजात के लिए, उत्तराखंड को प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति तथा राष्ट्रवाद की भावना को बलशाली बनाने के लिए रखा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के 2002 से स्वयंसेवक व केसरिया हिन्दू वाहिनी के मीडिया प्रभारी आर के राही 1990 से निरन्तर एक रोज़ा रमज़ान का रखते चले आ रहे हैं। राही जी रात को 3 बजे मुँह हाथ धोकर ईश्वर की उपासना व ध्यान करके पूरा दिन कुछ नही खाते, शाम को अपने गुरुतुल्य शायर व सर्वधर्म सदभाव कमेटी के अध्यक्ष अफ़ज़ल मंगलोरी के साथ रोज़ा खोलते हैं। आर के राही का मानना है कि सनातन धर्म में “वसुधैव कुटुम्भकम” तथा मुसलमानों की पवित्र कुरान में “अल्कोम अयाल अल्लाह” अर्थात पूरी प्रजा ईश्वर की संतान है, इस लिए ये सन्देश इस रोज़े के माध्यम से भी उनके द्वारा दिया जाता है जो उनके दिल की आवाज़ भी है। वे बताते हैं कि पंडित जवाहरलाल नेहरु के वंशज दिल्ली के महान शायर रहे पंडित आंनद मोहन गुलज़ार देहलवी भी 60 वर्ष दिल्ली में रमज़ान में केवल एक “रोज़ाए रवादारी” रखते थे जिसमें अटल बिहारी बाजपेई, गुजराल, राजीव गांधी जैसे दिग्गज नेताओं के साथ साथ दिल्ली के हर वर्ग के विद्वान, शिक्षाविद, धर्मगुरु भाग लेते थे, उन्ही से प्रेरित होकर राष्ट्रीय एकता को समर्पित मेरा ये एक रोजा रहता है। राही ने बताया कि संघ की ओर से अनेक मानवतावादी ऐसे कार्य किये जाते हैं, जो धर्म से ऊपर उठाकर मानव जाति के कल्याण के लिए किए जाते हैं, जैसे निःशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर, निर्धन वर्ग की सहायता,निशुल्क शिक्षा आदि शामिल है।

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