रूड़की। ( आयुष गुप्ता )
रहमतों और गुनाहों से मुक्ति का महीना है रमजान, तो वहीं कमजोर, असहाय और जरूरतमंदों की मदद का भी महिना है। ये मुकद्दस रमजान का पहला अशरा रहमत, दूसरा असरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नम से मुक्ति (आजादी) का है। रमजान रहमत और बरकत का महीना है, इसमें रहमत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शैतान को जंजीर में जकड़ दिया जाता है।नफ्ल का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब सत्तर फर्ज के बराबर दिया जाता है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों हाजी नौशाद अहमद, आजाद अली, अनीस अहमद, हाजी राव इरशाद, मोहम्मद शहजाद खान और हाजी गुलफाम अहमद रमजान के बारे में बयान करते हैं कि रमजान एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है जलाने यानी इस महीने में लोगों के तमाम गुनाह जल जाते हैं, इसलिए रमजान के पूरे महीने तमाम मोमिन रोजा रखते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं। रमजान मुस्लिम धर्म का एक मुबारक महीना होता है, जोकि इस्लाम की पांच स्तंभों में से एक है, जैसे पहला कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज।इस पवित्र महीने में पांच वक्त की नमाज के अलावा नमाजे तरावीह पढ़ी जाती है। कुरान की तिलावत की जाती है। कमजोर, असहाय और जरूरतमंद गरीब लोगों की मदद के साथ ही रमजान किट-राशन दिया जाता है।