• 1973 चिपको आंदोलन.
  • चिपको आंदोलन की तर्ज पर अपने पेड़ों को बचाने का संकल्प.

बागेश्वर: उत्तराखंड आंदोलन से मिला राज्य है। लोगों ने यही सोचकर राज्य के लिए आंदोलन किया था कि उनकी बात को हुकुमरान आसानी से सुन सकेंगे। विकास की बयार गांव-गांव तक बहुगी, लेकिन लोगों को तब इस बात का अंदाजा नहीं था कि हुकुमरान वास्तव में बहरे नहीं होते, लेकिन बहरे होने का नाटक जरूर कर रहे होते हैं। उनके लिए जनता केवल वोट है।

सरकार भी कोई ध्यान नहीं दे रही
अगर ऐसा नहीं होता, तो उत्तराखंड में महिलाओं को फिर से चिपको जैसा आंदोलन नहीं करना पड़ता। हैरानी है कि सरकार भी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है और अधिकारी कोर्ट का हवाला देकर करीब 500-600 पेड़ों को कोटने की तैयारियों में जुट गए हैं। जबकि महिलाएं…चिपको की तर्ज पर एक पेड़, एक महिला आंदोलन छेड़े हुए हैं। वो पेड़ों से चिपकर उनकी रक्षा कर रही हैं। यह आंदोलन गौरा देवी के चिपको आंदोलन की यादें ताजा कर रहा है। उस आंदोलन में करीब 2400 से अधिक पेड़ों को बचाने के लिए 27 महिलाओं ने अपनी जान तक दे दी थी। सवाल यह है कि क्या सरकार फिर से 1973 चिपको आंदोलन को परिणामों को दोहराना चाहती है?

पेड़ों को बचाने का संकल्प
बागेश्वर जिले की कांडा तहसील के रंगथरा-मजगांव-चैनाला मोटर मार्ग निर्माण रोकने के लिए ग्रामीण विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। महिलाओं ने चिपको आंदोलन की तर्ज पर अपने पेड़ों को बचाने का संकल्प लिया। दूसरी और प्रशासन सड़क निर्माण को हाई कोर्ट से मंजूरी मिलने की बात कहते हुए हर हाल में सड़क बनाने की जिद्द पर अड़ा हुआ है।

इस बात का सता रहा डर
लोगों को इस बात का डर सता रहा है कि सड़क बनने से जाखनी ग्रामसभा की वन पंचायत में मौजूद बहुमूल्य वन संपदा नष्ट हो जाएगी। इसलिए पेड़ों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगी। पेड़ काटने से पानी के स्रोत का भी सूखने का खतरा है। मजगांव तक सड़क कट गई है। अगर इससे आगे सड़क कटती है, तो गांव की महिलाओं खासकर वन पंचायत की ओर से तैयार किए गए जंगल के पेड़ों को काटा जाएगा, जिससे पर्यावरण को बड़ा नुकसान हो सकता है।

जाखनी क्षेत्र की महिलाएं पेड़ों से लिपटीं
इसी बात को ध्यान में रखते हुए जाखनी क्षेत्र की महिलाएं पेड़ों को बचाने के लिए लिए उनसे लिपट गई थी। ग्रामीण हेमा देवी, गीता मेहता, मनुली देवी, शांति देवी, रेखा देवी, हेमा देवी, बिमला देवी, कला देवी, तुलसी देवी वो महिलाएं हैं, जो रैणी की गौरा देवी और उनकी साथी महिलाओं की याद ताजा कर रही हैं। उनका कहना है कि सड़क की कीमत पर हम पर्यावरण और पेयजल का संकट नहीं बढ़ा सकते।

…प्रदीप रावत (रवांल्टा)

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