रुड़की। ( बबलू सैनी )
झबरेड़ा विधानसभा सीट से बसपा प्रत्याशी आदित्य बृजवाल का चुनाव लगातार पिछड़ने लगा है। वह इसलिए कि अब लोग उन्हें इसलिए समर्थन देने को राजी नहीं हो रहे हैं, क्योंकि उनके पिता ने बसपा के सिंबल पर चुनाव लड़ा और बाद में कांग्रेस सरकार में समर्थन देकर एचआरडीए में अध्यक्ष बने, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने विधानसभा के विकास में कोई योगदान नहीं दिया। शुरुआत में लोगों ने यह भरोसा जताया था कि आदित्य बृजवाल अपने पिता की कार्यशैली से इतर होकर झबरेड़ा विधानसभा में नई उर्जा के साथ विकास की नई गाथा लिखेंगे, लेकिन वह भी अब जगह-जगह भाषणों और नुक्कड़ सभाओं में अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने का आश्वासन देकर लोगों से वोट देने की अपील कर रहे हैं। अब यदि उनके पिता के कार्यकाल पर प्रकाश डाला जाए तो आपकी याद ताजा हो जायेंगी कि जब जब बसपा के सिंबल पर हरिदास विधायक बने, तब-तब उन्होंने बसपा के कैडर वोट को छिटकाने का काम किया। क्योंकि उन्होंने विधायक बनने के बाद क्षेत्र में विकास तो दूर, सड़कों की भी दुरुस्ती नहीं कराई और कांग्रेस सरकार में एचआरडीए के अध्यक्ष पद पर बैठकर उन्होंने खूब वारे-न्यारे किये, लेकिन झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्र के विकास को गति देने के लिए उनके पास समय ही रहा, क्योंकि वह पैसे कमाने में इतने मशगूल थे कि उन्हें क्षेत्र की जनता की कुशलक्षेम पूछने का भी समय नहीं मिला, लेकिन आज आदित्य बृजवाल अपने पिता के पद चिन्हों पर चलकर विकास (भ्रष्टाचार) करने का दावा जनता से कर रहे हैं। आलम यह है कि अब जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है, लोग पिता-पुत्र की रणनीति को समझते जा रहे हैं और लोग भी अब उनसे छिटकने लगे हैं। क्योंकि आदित्य बृजवाल के पास न तो कोई रणनीति है, न ही उनके पास कोई विजन है। वह सिर्फ और सिर्फ अपने पिता के नाम पर विधायक बनना चाहते हैं, तो आखिर उन्हें क्षेत्र की जनता की क्या पड़ी, कि वह उनके ओर क्षेत्र के विकास को गति दे सकेंगे। कुल मिलाकर आसपा प्रत्याशी बसपा प्रत्याशी से बेहतर चुनाव लड़ रहे है।

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