रुड़की। ( आयुष गुप्ता ) आई.आई.टी. रुड़की ने समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक समस्या के समाधान को विकसित किया है। भारत सरकार ने जुलाई 2022 से गैर बायोडिग्रेडेबल पॉलीबैग के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि इनका प्रयोग पर्यावरण के लिए खतरा है। आई.आई.टी. रुड़की के रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर पी.पी. कुण्डु, जो कि पॉलिमर प्रौद्योगिकी के विषय विशेषज्ञ हैं, उनके द्वारा एक थर्मोप्लास्टिक स्टार्च विकसित किया गया है, जिससे एल.डी.पी.ई.बायोडिग्रेडेबल हो जाता है। कृषि आधारित देश होने के कारण भारत में आलू, चावल, गेहूँ तथा मक्का आदि प्रचुर मात्रा में स्टार्च उत्पादक है। आईआईटी रुड़की ने बड़ी मात्रा में बायोडिग्रेडेबल पॉलीबैग के निर्माण के लिए इस तकनीक को नोएडा स्थित अग्रसार इनोवेटिव्स एलएलपी को हस्तांतरित कर दिया है। मैसर्स अग्रसार बायोडिग्रेडेबल पॉलीबैग के निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में वर्तमान तकनीक का व्यावसायिक उपयोग करेगा। क्रिस्टलीय होने के कारण प्राकृतिक स्टार्च को एल.डी.पी.ई. के साथ मिश्रित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसका गलनांक 250 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है, इसलिए इसको एक भरने वाले तत्व के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है। जबकि थर्मोप्लास्टिक स्टार्च, प्राकृतिक स्रोत जैसे- आलू, मक्का आदि से प्राप्त स्टार्च एक प्लास्टिसाइज्ड रुप है। थर्मोप्लास्टिक स्टार्च प्रायः अनाकार होता है जबकि साधारण स्टार्च क्रिस्टलीय होता है। आमतौर पर प्रयोग में लाये जाने वाले प्लास्टिसाइज पालिफंक्सनल अल्कोहल जैसे ग्लिसरॉल और सोर्बिटोल के साथ-साथ कुछ कम आणविक भार यौगिक होते है जो कि पानी, फार्मामाइड जैसे इंटेर्मोलिक्युलर हाइड्रोजन यौगिक बनाने में सक्षम है। स्टार्च और प्लास्टिसाइजर, ऊष्मा और निरंतर प्रक्रिया के कारण जिलेटिनाइजेसन से गुजरते हैं। इसमे स्टार्च की क्रिस्टिलीकरण प्रकृति कम हो जाती है और वह अनाकार संरचना की ओर अग्रसर हो जाता है। इस अनाकार संरचना के कारण इसका मिश्रण एल.डी.पी.ई. से हो जाता है। इस अवसर पर भा.प्रौ.सं. रुड़की के निदेशक प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि इस प्रौद्योगिकी का लाभ, भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध स्टार्च के कारण और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग के कारण बहुत अधिक है।

By Admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share