रुड़की। ( आयुष गुप्ता ) सोमवार को भरत सिंह पीठ के तत्वाधान में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की में जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग (डब्ल्यूआरडी एंड एम), आईआईटी रुड़की और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), रुड़की द्वारा संयुक्त रुप से ‘ग्लेशियर झीलों के फटने से होने वाली बाढ़ पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव’ विषय पर कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला का उद्देश्य ग्लेशियर झीलों के निर्माण, उनके अचानक फटने से होने वाले खतरों और उन्हें रोकने के उपायों पर गहन चर्चा करना था। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से उत्पन्न चुनौतियों और उनकी रोकथाम पर चर्चा करने के लिए विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं को एक मंच पर लाना था। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के निदेशक डाॅ. एमके गोयल ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है और इस पर आयोजित इस कार्यशाला से हम सभी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। कार्यशाला में प्रो. वी.पी. सिंह, प्रो. ए.के. लोहानी, डाॅ. संजय के. जैन जैसे प्रख्यात विशेषज्ञों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में शामिल हुए ए. एंड एम. यूनिवर्सिटी टेक्सास, यूएसए के प्रतिष्ठित प्रोफेसर प्रो. वी.पी. सिंह ने जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियल झीलों के निर्माण और उनके स्थायित्व पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे जीवन में भी कापफी बदलाव आए हैं। वैज्ञानिक ‘जी’ और सतही जल जल विज्ञान के प्रमुख प्रो. ए.के. लोहानी ने ग्लेशियल झीलों के जोखिम आंकलन और चेतावनी प्रणाली के महत्व पर प्रकाश डाला। वहीं, आईआईटी रुड़की के विजिटिंग फैकल्टी डाॅ. संजय के. जैन ने ग्लेशियल झीलों के फटने से होने वाली बाढ़ से होने वाली आपदाओं और उनके प्रभावी प्रबंधन के उपायों पर गहन जानकारी दी। कार्यशाला के दौरान चर्चा की गई कि ग्लेशियर झीलों की पहचान और निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग, जीआईएस और हाइड्रोडायनामिक माॅडलिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वक्ताओं और प्रतिभागियों ने इस बात पर जोर दिया कि इन बाढ़ों के प्रभाव को कम करने के लिए अंतर-विभागीय और अंतः विषयी सहयोग की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन जल संसाधन विभाग की प्रो. कृतिका कोठारी ने किया और कार्यक्रम के आयोजक और भरत सिंह चेयर प्रोफेसर आशीष पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के 70 से अधिक शोधकर्ताओं, छात्रों और पेशेवरों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस कार्यशाला ने न केवल ग्लेशियल खतरों की गंभीरता को समझने का अवसर प्रदान किया, बल्कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए नए दृष्टिकोण और समाधान भी सुझाए।