रुड़की।  ( आयुष गुप्ता ) आईआईटी रुड़की में ‘जलवायु और मौसम संबंधी चरम घटनाएं’ विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस का शुभारम्भ हुआ। उक्त कांफ्रेंस का आयोजन आईआईटी रुड़की की स्थापना के गौरवशाली 175 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग द्वारा किया जा रहा है। उद्घाटन सत्र को सम्बोधित

करते हुए ओडिशा सरकार में विशेष राहत आयुक्त तथा अपर मुख्य सचिव प्रदीप कुमार जेना ने कहा कि मौसम सम्बन्धी चरम घटनाओं ने दुनिया के सोचने का तरीका बदल दिया है। उल्लेखनीय है कि प्रदीप जेना वर्तमान में ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के प्रबंध निदेशक भी हैं। उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ रही चरम घटनाओं की संख्या और आवृत्ति आम जनता और वैज्ञानिक समुदाय के साथ-साथ सरकारी अधिकारियों के लिए एक प्रमुख चुनौती है। जेना ने कहा कि पहले चरम मौसमी घटनाएं व मौसमी आपदाएं विशेष मौसम में ही घटित होती थी। परन्तु पिछले कुछ वर्षों से आपदाओं का अब कोई विशेष मौसम नहीं रह गया है। कम अवधि की अधिक तीव्रता वाली बाढ़ की घटनाओं में बढ़ोत्तरी नीति नियंताओं के लिए आज एक प्रमुख चिन्ता का विषय है।

उन्होंने बताया कि इस प्रकार के बाढ़ की सटीक व समय से भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। मौसम विज्ञानियों को इस प्रकार की चरम मौसमी घटनाओं का समय से सटीक पूर्वानुमान व्यक्त करना समय की मांग है। आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर अजित के. चतुर्वेदी ने कहा कि बढ़ती मौसमी चरम घटनाएं आम जनमानस में चिंता का विषय है। विज्ञान और समाधान साथ-साथ चलना चाहिए तथा व्यावहारिक समाधानों की योजना बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आम जनता के लिए व्यावहारिक समाधान को सरल बनाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने आईआईटी रुड़की की स्थापना के गौरवपूर्ण 175 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 175 रुपये का सिक्का जारी किया है। सरकार ने डाक टिकट जारी करने की भी मंजूरी दे दी है। इसके अतिरिक्त आईआईटी रुड़की ने स्कूली बच्चों को परिसर भ्रमण के लिए आमंत्रित करने की अभिनव पहल की शुरुआत किया है। प्रो. चतुर्वेदी ने बताया कि आईआईटी रुड़की ने अनुसंधान और विकास को गति प्रदान करने के लिए स्थानीय उद्योग और पड़ोसी संस्थानों के साथ साझेदारी के कई प्रयास किये हैं। आईआईटी रुड़की ने रुड़की के नागरिकों के लिए ‘टेक सारथी’ नाम से एक नागरिक सेवा ऐप भी लॉन्च किया है। उद्घाटन सत्र को उत्तराखण्ड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के महानिदेशक डॉ. दुर्गेश पंत ने कहा कि पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों की बदौलत विकसित होने वाली विभिन्न मानव प्रजातियां कैसे धरती पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही हैं, यह एक विचारणीय प्रश्न है। उन्होंने कहा कि हमारे पास रहने के लिए अन्य कोई ग्रह नहीं है, इसलिए हमें प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। डॉ. आर.पी. सिंह, निदेशक, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान देहरादून ने जलवायु परिवर्तन की निगरानी के लिए रडार उपकरणों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि शुरू में इस विषय पर लोगों के विचार भिन्न थे, लेकिन अब यह वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट हो गया है कि दुनिया में वैश्विक तापमान वृद्धि हो रही है तथा हम सभी जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को अब अपने वास्तविक जीवन में देख रहे हैं। टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी यूएसए में वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. वीपी सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु, बवंडर, गर्मी की लहरें, बाढ़ और सूखा दुनिया भर में बड़े पैमाने पर विनाश पैदा कर रहे हैं। चरम मौसमी घटनाएं अब वैश्विक समस्या बन चुकी हैं, इसलिए इन समस्याओं का उचित समाधान करना आज समय की मांग है। उन्होंने आशा जताई कि यह अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन कुछ क्रियान्वित करने योग्य समाधान की अनुशंसाओं के साथ समाप्त होगा। कार्यक्रम के प्रारम्भ में जल संसाधन प्रबंधन एवं विकास विभागाध्यक्ष तथा कांफ्रेंस के चेयरमैन प्रो. आशीष पाण्डेय ने अतिथियों का स्वागत करते हुये विभाग के गौरवशाली इतिहास और नवोन्वेषी कार्यों से परिचित कराया। सम्मेलन के आयोजन सचिव प्रो. मोहित प्रकाश मोहंती ने सम्मेलन के उद्देश्य के बारे में विस्तार पूर्वक अवगत कराया। कार्यक्रम का संचालन जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग में सहायक प्राध्यापक प्रो. कृतिका कोठारी ने किया। उद्घाटन सत्र का समापन प्रो. मोहित मोहंती द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

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