रुड़की।
भारतीय प्रौद्योगिकी रुड़की के जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग द्वारा ने हिमालयी पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन के साथ संयुक्त रूप से सकल पर्यावरण उत्पाद पर एक पैनल चर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा का मुख्य उद्देश्य पारिस्थितिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा विकास को परिभाषित करने के लिए जीडीपी के नेतृत्व वाले आर्थिक विकास मानकों से सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) उपायों में स्थानांतरित करने के लिए एक व्यापक रणनीति बनाने की आवश्यकता है। कई लोगों का मानना है कि जब तक हम पारिस्थितिक स्थिरता की अनदेखी करते रहेंगे, तब तक आर्थिक स्थिरता हासिल नहीं की जा सकती है। वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिक क्षति को रोकने के उपायों के कार्यान्वयन की आवश्यकता के बारे में बोलते हुए, HESCO के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. अनिल पी. जोशी ने कहा, “हम बड़ी आबादी के लिए देश में आर्थिक विकास की दबाव की जरूरतों को नकार नहीं सकते हैं, लेकिन उसके साथ-साथ पारिस्थितिक आवश्यकताओं से इन्कार भी नहीं किया जा सकता है। व्यावसायीकरण पर अधिक जोर ने पारिस्थितिक मुद्दे को पीछे छोड़ दिया है। यह तथ्यगत है कि अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन होना चाहिए तथा स्थिर पारिस्थितिकी से ही सतत आर्थिक विकास भी सम्भव है। कार्यक्रम सुबह प्रोफेसर आशीष पांडे, विभागाध्यक्ष, जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग, आईआईटी रुड़की के स्वागत भाषण के साथ शुरू हुआ। प्रो० पाण्डेय द्वारा प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और हिमालयी पर्यावरण अध्ययन संरक्षण के संस्थापक पद्मभूषण डॉ अनिल पी जोशी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया। डॉ. जोशी ने आज के समय में विकास के मानदंड की आवश्यकता विषय पर विस्तार से चर्चा किया। डॉ. जोशी ने कहा कि हमारे पास मौजूद अन्य मापदंडों के संबंध में उस विषय की पूरकता पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास को साथ लेकर चलने में सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) का अनुकूलन किस प्रकार किया जा सकता है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। डॉ. शेखर सी. मंडे सचिव डीएसआईआर और महानिदेशक, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद, अनुसंधान भवन, नई दिल्ली ने इस विषय के महत्व और आज के संदर्भ में यह कितना प्रासंगिक है, के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के तत्वों को मजबूत करने की संभावनाओं का अध्ययन करके विकास और विकास के पैमानों तय करने की आवश्यकता है। आज के इस कार्यक्रम में आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजीत के. चतुर्वेदी ने सकल पर्यावरण उत्पाद की सराहना करते हुए कहा कि हमें अपने स्वयं के कार्यों के मूल्यांकन के लिए एक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है इससे विभिन्न राज्यों से तुलना करके हम अपने को और बेहतर स्थिति में ला सकते हैं।
यूपीईएस के कुलपति प्रोफेसर राय ने भी विषय की प्रासंगिकता और महत्व पर चर्चा किया। इस विषय से काफी समय से जुड़े हुए डॉ. राकेश कुमार, पूर्व निदेशक, सीएसआईआर-नीरी, नागपुर, ने एक सूत्र और जीईपी की संरचना तैयार करने के संदर्भ में इस बात पर जोर दिया कि कई हितधारकों को लेकर इसे किस प्रकार आगे बढ़ाया जा सकता है। कई अन्य वक्ताओं के संक्षिप्त परिचय के बाद मैनेजमेंट स्टडीज विभाग, आईआईटी रुड़की के प्रो. विनय शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
पैनल चर्चा में डॉ. धनंजय मोहन, आईएफएस, निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान, प्रो. एम.एल. कंसल, आईआईटी रुड़की, प्रो. एस.के. बारिक, निदेशक, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, डॉ. देबप्रिया दत्ता, सलाहकार और प्रमुख / वैज्ञानिक-जी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, सुश्री मेघा प्रकाश, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, डॉ. कपिल जोशी, आईएफएस, अतिरिक्त प्रधान प्रमुख वन संरक्षक, उत्तराखंड, प्रो. दुर्गेश पंत, निदेशक, कंप्यूटर विज्ञान और आईटी स्कूल, व्यावसायिक शिक्षा और ऑनलाइन शिक्षा, उत्तराखंड, डॉ. गीता एस हेग-डी, डीन, स्कूल ऑफ बिजनेस, यूपीईएस, देहरादून, प्रो. एसपी सिंह , आईआईटी रुड़की डॉ तरुण ढींगरा, सहायक डीन अनुसंधान, UPES, देहरादून, और प्रो. प्रसूम द्विवेदी, यूपीईएस, देहरादून शामिल रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रो. रजत अग्रवाल, प्रबंधन अध्ययन विभाग, आईआईटी रुड़की द्वारा किया गया।
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