रुड़की। ( आयुष गुप्ता ) हरिद्वार पंचायत चुनाव के परिणाम आने के बाद बसपा के दोनों विधायक अपने ही संगठन से बेहद नाराज दिखाई दिये। दोनों विधायकों ने पंचायत चुनाव में अपनी उपेक्षा का जिम्मेदार बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आदित्य बृजवाल और पूर्व विधायक हरिदास पर लगाया। इतना ही नहीं उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष आदित्य बृजवाल और प्रदेश प्रभारी पर पंचायत चुनाव में बसपा को कमजोर करने का गम्भीर आरोप भी लगाया।
अपने कैम्प कार्यालय पर एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए लक्सर से बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद और मंगलौर विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी ने बसपा प्रदेश अध्यक्ष आदित्य बृजवाल और हरिदास पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें पंचायत चुनाव से दूर रखा गया। उनकी पार्टी में उपेक्षा की गई। बसपा विधायक ने कहा कि जिला पंचायत चुनाव में प्रत्याशियांे का चयन भी मनमाने तरीके से किया गया। सामान्य सीटों पर भी दलित समाज के लोगों को चुनाव लड़ाया गया। जबकि उन सीटों पर बेहतर और जिताऊ प्रत्याशी बसपा के पास मौजूद थे। उन्होंने कहा कि वह बसपा प्रमुख मायावती का बेहद सम्मान करते हैं और करते रहेंगे, लेकिन जब उनकी मीटिंग बसपा प्रमुख मायावती से होगी, तो वह अपना पक्ष जरूर रखेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि सोशल मीडिया पर आज मुस्लिम समाज को तरह-तरह से बदनाम किया जा रहा है। 2012 में जब बसपा को बचाने का काम हाजी सरवत करीम अंसारी ने किया था। उसे बसपा के लोग भूल गए, जबकि हरिदास और स्वर्गीय सुरेंद्र राकेश ने बसपा को धोखा देने का काम किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि आज बसपा प्रदेश अध्यक्ष ने मुस्लिम समाज को टिकट नहीं दिए, जिसका खामियाजा बहुजन समाज पार्टी को भुगतना पड़ा। उन्होंने कहा कि चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है, जिसकी जांच होनी चाहिए। शहजाद ने कहा कि बहादराबाद और भगवानपुर में मुस्लिम समाज पर लाठी चार्ज हुआ जबकि रुड़कीं और नारसन में दलितों पर लाठी चार्ज हुआ है। लेकिन बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आदित्य बृजवाल शांत हैं, जिन्हें जांच की मांग उठानी चाहिए। इस दौरान बसपा के मंगलौर विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी ने भी बसपा प्रदेश अध्यक्ष आदित्य बृजवाल और हरिदास पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि जिला पंचायत की 44 सीटों में से 28 सीटों पर हारने वाले प्रत्याशियो को चुनाव लड़ाया गया, जिससे बसपा का संगठन बेहद कमजोर साबित हुआ। बसपा प्रदेश अध्यक्ष की लापरवाही का खामियाजा आज बसपा को भुगतना पड़ा।