रूडकी। ( बबलू सैनी )
पवित्र सावन मास में लाखों की संख्या में हरिद्वार से गंगाजल लेकर हर-हर महादेव के जयकारों से जहां हरिद्वार नगरी शिव भक्तों के रंग में डूबी हुई है, वहीं आकर्षक रंगों में रंगी कांवड़ लेकर शिवभक्त गतंव्य की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। कांवड़ यात्रा के बारे में मान्यता है कि सृष्टि में सबसे पहली कांवड़ यात्रा त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता की इच्छा की पूर्ति के लिए कांवड़ लाए थे। माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर श्रवण कुमार हरिद्वार गंगा स्नान के लिए लाए और फिर वहां से लौटते समय अपने साथ गंगाजल भी लेकर आए। इसी गंगाजल से उन्होंने अपने माता-पिता द्वारा शिवलिंग पर अभिषेक कराया था तभी से आज तक इस कांवड़ यात्रा का प्रारंभ होना माना जाता है। इस बार दो वर्ष के अंतराल के पश्चात कोरोना काल खत्म होने के बाद कांवड़ यात्रा को लेकर शिवभक्तों में बड़ा उत्साह नजर आ रहा है।छोटी-बड़ी आकर्षण रंगों में रंगी कांवड़ लेकर शिवभक्त हर-हर महादेव के जयकारों के साथ बड़ी श्रद्धा से अपने-अपने मंदिरों की ओर दौड़े चले जा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर भगवान श्री राम मंदिर के आकार की वाली कांवड़ को तैयार करने के लिए राजपूताना स्थित नितिन मेहरा व राजेंद्र मेहरा कारीगरों का कहना है कि चार-पांच दिन में वह इस भव्य कांवड़ को तैयार कर देंगे। इस भव्य कांवड़ को तैयार करने में उन्हें प्रतिदिन 12 से13 घंटे काम करना होगा। उनका कहना है कि विगत अनेक वर्षों से वह देश के प्रसिद्ध मंदिरों की तर्ज पर कांवड़ तैयार करने का कार्य कर रहे हैं और इस बार उन्हें इस कांवड़ को तैयार करने जिस अनुभूति का एहसास हो रहा है वह कुछ अलग ही है, क्योंकि दो वर्षों से कोरोना के चलते कांवड़ मेले का आयोजन नहीं हो पाया तथा इस बार शिव की कृपा से कांवड़ को तैयार करने का जो अवसर मिला है वह अपने आप में अद्भुत तो है ही, यही नहीं यह गंगा कांवड़ मेला/यात्रा जहां एक ओर धार्मिक रूप में देखा जाता है, वहीं राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक है, क्योंकि अनेक मुस्लिम लोग भी इस कांवड़ यात्रा में विभिन रूप से अपनी भागीदारी दर्शाते हैं, जिसका प्रमुख उदाहरण ज्वालापुर, मंगलौर और मेरठ में भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग विभिन प्रकार की कांवड़ बनाते है।

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