रुड़की। ( आयुष गुप्ता ) उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र के गांव में अनोखी परंपरायं देखने को मिलती हैं, जहां एक ओर शहरीकरण व पाश्चात्य शिक्षा के कारण लोग अपनी परंपराओं को भूल रहे हैं। वहीं गांव के लोग आज भी अपने पूर्वजों के रीति-रिवाजों को संजोये हुये हैं। इगास बग्वाल पर पर्यावरण विद् व वृक्ष मित्र डाॅ. त्रिलोकचंद सोनी के नेतृत्व में ग्राम सभा हटवाल गांव टिहरी गढ़वाल के जूनियर हाईस्कूल के प्रांगण में इगास बग्वाल (बूढ़ी दीपावली) पर्व का आयोजन किया गया। जिसमें पूर्वजों की भैलो बनाने व खेलने के गुर सिखाये गये और भैला की पूजा करके खेली गई। सोनी ने कहा कि हमारे पूर्वजों की अनेक परंपरायें थी, जो लोगों को एक सूत्र में बांधकर भाईचारे व प्रेमबंधुत्व से रखती थी। लेकिन वर्तमान परिवेश में देखें तो लोग शहरों में जाने के बाद अपनी परंपराओं व रीति-रिवाजों को भूल जाते हैं। जिसका असर हमारी आने वाली पीढ़ी पर पड़ रहा हैं। आज इगास बग्वाल जिसे काशी बग्वाल भी कहते हें, इस लोक पर्व पर गांव में देहली, चूल्हा, ओखली, मूसल, हल, जुंआ, जेवर, रखे बक्शे, छत की चिमनी की पूजा-अर्चना गेरवा व कमेहेड़े से एपड़ बनाकर करते हैं और भैलो खेलकर मनाते हैं। भैलो जो चीड़ की लीसे वाली लकड़ी से बनाई व भैला लगीला से बांधी जाती हैं, बच्चों को भैलो बनाना व खेलना सिखाया जाता हैं। ताकि पूर्वजों की बनाई परंपरायें बची रह सके और आने वाली पीढ़ी इससे सीख लें। वहीं प्रधानाध्यापक नारायण प्रसाद सुयाल ने इगास बग्वाल पर भैलो खेलकर मनाने के रीति-रिवाज को बचाने की अपील की। वहीं अनिल हटवाल ने भी पुरानी परंपराओं को जीवित रखने का आहवान किया। इस मौके पर हुकम सिंह हटवाल, बृजपाल सिंह, महावीर धनौला, सूर्यमणि नौटियाल, वीरचंद्र कुमाई, अनिल हटवाल, राजेन्द्र सिंह, महेश पंचम, राकेश पंवार, राधिका, रजनीश, ज्योति, शालू, आशा, कोमल, आंचल, सोनम, मुकेश, ऋषभ, केशव आदि मौजूद रहे।

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