रुड़की।  ( बबलू सैनी ) डिफेंस इलेक्ट्रॉक्सि एप्लीकेशन्स लेबोरेटरी (डीआरडीओ) और आईआईटी रुड़की के बीच संयुक्त आर एण्ड डी गतिविधियों के परिणामस्वरूप प्रोग्रामेबल रेडियो की भावी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वदेशी रेडियो प्रिफक्वेंसी पॉवर एम्प्लीफायर्स का विकास किया जा रहा है। इस शोध समूह का नेतृत्व प्रोफेसर करूण रावत आईआईटी रुड़की तथा डील डीआरडीओ से पिनाकी सेन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के समूह द्वारा किया गया, जिन्होंने ऐसे एम्प्लीफायर्स को डिजाइन किया है, जो उच्च क्षमता की आवश्यकताओं (थर्मल प्रबन्धन के लिए) को एक साथ पूरा करने में सक्षम हैं। इनका डिजाइन साइज, वजन और पॉवर (स्वैप) के लिए अनुकूल है। ये एम्प्लीफायर यूनिट्स शानदार परफोर्मेन्स देते हैं और विश्वस्तरीय निर्माताओं द्वारा बनाए गए ऐसे ही प्रोडक्ट्स को पीछे छोड़ उच्च दक्षता प्रदान करते हैं। साथ ही अच्छे हार्मोनिक एवं इंटरमॉडयूलेशन सप्रेशन को सुनिश्चित करते हैं। स्वदेशी अवयवों की कमी आर एण्ड डी संस्थानों के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है, जैसे कि सैन्य बलों के लिए निर्धारित समय के अंदर सम्पूर्ण सुरक्षा उपकरणों को समेकित करना मुश्किल हो जाता है। विज्ञान और अकादमिक आर एण्ड डी के संयोजन के साथ आधुनिक तकनीक वाले डिजाइनों को विकसित किया जा सकता है। हालांकि, इस तरह की वैज्ञानिक जांच आर एण्ड डी लैब्स के साथ सहयोगपूर्ण प्रयासों के माध्यम से प्रोडक्ट-उन्मुख अभ्यास को बढ़ावा देती है। दक्षता में सुधार लाने से हीट लोड में काफी कमी आएगी, जो आवश्यक फॉर्म फैक्टर में प्रोग्रामेबल रेडियो चेसीज में आसान इंटीग्रेशन को बढ़ावा देगी। इस युनिट को डील और डीआरडीओ की स्वदेशी रेडियो युनिट्स के साथ असेम्बल किया जाएगा तथा निजी घरेलू साझेदारों के द्वारा बड़े पैमाने पर इनका उत्पादन किया जाएगा। संयुक्त रुप से प्रोडक्ट के विकास की इस प्रक्रिया के चलते दोनों संगठनों में आपसी तालमेल बना है, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के मद्देनजर भारतीय सैन्य बलों की सुरक्षा उपकरणों को अपग्रेड करने में कारगर साबित होगा। आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजीत के चतुर्वेदी ने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ के रक्षा तकनीकों के विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक शक्तिशाली बीकन के रुप में उभरने के साथ, हमें सरकारी अनुसंधान एजेंसियों, उद्योगों के साथ-साथ अकादमिक संस्थानों की ताकत का तालमेल बिठाने की जरूरत है। जिससे की भारत को प्रमुख रक्षा तकनीकों और प्रणालियों में वास्तव में वैश्विक खिलाड़ी बनाया जा सके। डील डीआरडीओ के डायरेक्टर लाल चंद मंगल ने कहा कि ‘‘अनुसंधान, डिजाइन एवं विकास में अपने अनुभव के साथ डील डीआरडीओ अब अकादमिक एवं उद्योग जगत के सहयोग से स्वदेशी भावी तकनीकों के विकास के लिए तैयार है और अपनी इस पहल के द्वारा देश की सुरक्षा प्रणाली को सहयोग प्रदान करने और इसमें तालमेल बनाए रखने के लिए प्रयासरत है। प्रोफेसर करूण रावत, डिपार्टमेन्ट ऑफ इलेक्ट्रोनिक्स एण्ड कम्युनिकेशन, आईआईटी रुड़की ने कहा कि ‘तकनीकी अपग्रेडेशन के भारत के मिशन के मद्देनजर, मौजूदा आर एण्ड डी मौजूदा क्षमताओं में सुधार और नई क्षमताओं के विकास में कारगर साबित होगी।

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