रुड़की। ( बबलू सैनी )
सीएसआईआर केन्द्रीय भवन अनुसंधान रुड़की ने “मैन्यूफैक्चरिंग ऑफ इंटरनल फ्यूल बेस्ड ईकोफ़्रेंडली एंड एनर्जी एफ़ीसीयंट बर्रंट क़्ले ब्रिक्स” (Manufacturing of internal fuel based Eco-Friendly and energy efficient burnt clay bricks) की प्रौद्योगिकी विकसित की है, जो कि ईंटों के कुशल निर्माण के लिए सहायक साबित होगी। इस प्रौद्योगिकी में मिट्टी में पिसा हुआ आंतरिक ईंधन जैसे कि विद्युत संयत्र से निकला हुआ अपशिष्ट कोयला व बोटम ऐश या कृषि अवशेष जैसे चावल की भूसी, लकड़ी का बुरादा, गन्ने की खोई, चीनी मिलों से निकली प्रेस मढ़ (मैली), कपास, गेहूं व अरहर की डंडी को मिलाकर मशीनों से ईंटे तैयार की जाती है ।
आज संस्थान में आयोजित तकनीकी हस्तांतरण के अवसर पर इस प्रौद्योगिकी को दो ईंट निर्माताओं – मै. सूर्या भट्टा कंपनी सोनीपत एवं मै. कर्मा भट्टा कंपनी, बागपत को निदेशक डॉ. एन गोपाल कृष्णनन ने हस्तांतरित किया। इस अवसर पर परियोजना के प्रमुख डॉ. एल. पी. सिंह, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक ने तकनीकी जानकारी देते हुए बताया कि आंतरिक ईंधन के प्रयोग से न सिर्फ केवल मिट्टी व कोयले की बचत होगी, अपितु पर्यावरण को ईंटों के भट्टे के चलने से होने वाली हानि को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है। साथ ही इस तकनीक द्वारा ईंधन के प्रयोग में भी कमी आएगी तथा भट्टे पर काम करने वाली लेबर का स्वास्थ्य भी पर्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन में कमी आने से अच्छा रहेगा। यह प्रौद्योगिकी आने वाले समय में ईंट निर्माताओं के लिए ऊर्जा कुशल, प्राकृतिक स्रोत (मिट्टी) को दोहन से बचाने एवं पर्यावरण हितैषी के रुप में साबित होगी तथा बनने वाली ईंटों की लागत को 20 प्रतिशत तक कम किया जा सकेगा। इस अवसर पर डॉ. नीरज जैन, प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. सुमित्रो मैती, श्रीनिवास राव नाइक, डॉ. बी.एस. रावत, डॉ. पूर्णिमा परिदा आदि मौजूद रहे।
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